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केवलज्ञान हुआ । मल्लिनाथ भगवान को दीक्षा लेते ही केवलज्ञान हुआ । यह सब उस समय पर्याय की योग्यता की बात है, किसी का कुछ भी हस्तक्षेप नही है । ( ६ ) सव द्रव्यो मे जो-जो पर्याय होती हैं, वहवह उस उस समय की योग्यता के कारण ही होती हैं । इस बात को स्वीकार करते ही दृष्टि अपने भगवान पर आती है तभी वास्तव मे योग्यता को माना और जाना ।
प्रश्न १७ - जीव- पुद्गल द्रव्यो मे योग्यता की बात है या सव द्रव्यों के विषय मे योग्यता की बात है ?
उत्तर- ( १ ) जीव अनन्त, पुद्गल अनन्तानन्त, धर्म-अधर्म - आकाश एक-एक और लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य है । इन सब द्रव्यो मे प्रत्येक प्रत्येक मे अनन्त - अनन्त गुण है । प्रत्येक गुण मे पर्यायो की योग्यता जितने तीन काल के समय है उतनी ही पर्यायो की योग्यता हैं । ( २ ) वह योग्यता क्रमबद्ध और क्रमनियमित है । उसे जरा भी कोई भी हेर-फेर नही कर सकता है ।
प्रश्न १८ – सब द्रव्यो की पर्यायो को योग्यता क्रमबद्ध और निश्चित है, इसको कौन जानता है
उत्तर - चौथे गुणस्थान से लेकर सिद्धदशा तक सब जानते हैं । जानने में जरा भी हेर-फेर नही है मात्र प्रत्यक्ष-परोक्ष का भेद है ।
प्रश्न १६ - योग्यता, योग्यता की बातें करे और आत्मा का आश्रय ना लेवे, तो क्या दोष आवेगा ?
उत्तर- वह स्वछन्दता का सेवन करने वाला चारो गतियो मे घूमकर निगोद चला जावेगा । क्योकि योग्यता को जानने और मानने का फल अपने स्वभाव का आश्रय लेकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति करके क्रम से निर्वाण की प्राप्ति है ।
प्रश्न २० - योग्यता से क्या-क्या सिद्ध होता है
?
उत्तर- (१) जिस समय जोनसी पर्याय उत्पन्न होने की योग्यता हो, वही नियम से होती है । ( २ ) पर्याय होती है वह अपने स्वकाल