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( १२८ ) प्रश्न १३-उपादान-उपादेय अधिकार में किस योग्यता को बात चलती है ?
उत्तर-पर्यायरूप योग्यता की वात चलती है। यह योग्यतारूप पर्याय जानने योग्य है, आश्रय करने योग्य नहीं है।
प्रश्न १४-योग्यता रूप पर्याय के जानने से क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर-(१) सव मे योग्यतारूप पर्याय जो होनी है वही होगी आगे-पीछे नही। (२) पर मे करने-कराने की बुद्धि का अभाव हो जाता है। (३) दृष्टि अपने स्वभाव पर आ जाती है और जैन दर्शन के रहस्य का मर्मी वन जाता है। (४) क्रम से मोक्ष का पथिक बन जाता है।
प्रश्न १५-(१) पर्यायरूप योग्यता और द्रव्यरूप योग्यता के विषय मे क्या-क्या जानना चाहिये ?
उत्तर-(१) पर्यायरूप योग्यता ज्ञायक का ज्ञेय है, जानने योग्य है। (२) निज द्रव्यरूप योग्यता आश्रय करने योग्य है, क्योकि इसके आश्रय से ही धर्म की शुरुआत वृद्धि और पूर्णता होती है।
प्रश्न १६-पर्यायरूप योग्यता को विशेष रूप से समझाओ ? -
उत्तर-(१) जैसे-आम है, जब उसकी पकने योग्य अवस्था होती है तभी होगी, आगे-पीछे नही। किसी ने पाल मे देकर पहले पका दिया ऐसा नहीं है । (२) आम खट्टा था मीठा हो गया, जब उसकी मीठा होने योग्य अवस्था थी, तभी हुई, आगे-पीछे नही और किसी के कारण से भी नहीं। (३) शरीर मे बालकपन, युवावस्था, वृद्धावस्था होने योग्य होवे, तभी होती है। किसी बाह्य साधन से या किसी भी प्रकार से हेर-फेर नही हो सकता है। (४) महावीर भगवान को ३० वर्ष की आयु मे दीक्षा का भाव आया। आदिनाथ भगवान को ८३ लाख वर्ष पूर्व आयु के बाद दीक्षा का भाव आया। यह उनकी योग्यता ही ऐसी थी। (५) महावीर भगवान को दीक्षा के १२ वर्ष बाद केवलज्ञान हुआ और आदिनाथ भगवान को दीक्षा के एक हजार वर्ष बाद