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( उत्पाद) (२) अनन्तरपूर्वं क्षणवर्ती पर्याय क्षणिक उपादान कारण (व्यय) (३) त्रिकाली उपादान कारण ( धौव्य ) ( ४ ) निमित्त कारण । यह चार बातें प्रत्येक कार्य मे एक ही साथ एक ही काल मे नियम से होती हैं । [ प्रवचनसार गाथा ६५ ]
प्रश्न ११३ - उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही कार्य को उत्पत्ति होती है। क्या यह निरपेक्ष है ?
उत्तर - हॉ, कार्य स्वय पर की अपेक्षा नही रखता है इसलिए निरपेक्ष है और अपनी अपेक्षा रखता है इसलिए सापेक्ष है । पात्र भव्य जीवो को प्रथम निरपेक्ष सिद्धि करनी चाहिए । फिर जो कार्य हुआ — उसका अभाव रूप कारण कौन है । त्रिकाली कारण कोन है । और निमित्त कारण कौन है। इन बातो का ज्ञान करना चाहिए क्योकि कार्य के समय चारो वाते नियम से होती हैं ।
प्रश्न ११४ - राग — उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से हुआ है। ऐसा मानने से किस-किस कारण पर दृष्टि नहीं जातीं है ?
उत्तर- (१) घडा, चाक, कीली, डडा, हाथ आदि । (२) चारित्र गुण । (३) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर क्षणिक उपादान कारण आदि पर दृष्टि नही जाती है ।
प्रश्न ११५ – क्या घडा कारण और राग कार्य । कारणानुविधायी कार्याणि को कब माना और कब नहीं माना ।
उत्तर - आत्मा के चारित्र गुण मे से अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नौ नम्बर का अभाव करके उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से राग हुआ है घडे के कारण नही तो कारणानुविधायोनि कार्याणि को माना । और घड़े के कारण राग हुआ है तो - कारणानुविधायीनि कार्याणि को नही माना ।
प्रश्न ११६ - चाक कारण और राग कार्य । कारणानुविधायोनि कार्याणि को कब माना और कब नहीं माना ?