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क्षणिक उपादान कारण को बताना आवश्यक था। (३) अनन्तरपूर्व क्षणवर्ती पर्याय नी नम्बर क्षणिक उपादान कारण से पृथक करने की [अपेक्षा से और कार्य के सच्चा कारण का ज्ञान कराने के लिए उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण को बताना आवश्यक था । इसलिए तीनो कारणो का सच्चा ज्ञान कराने के लिए शास्त्रो मे इतना लम्वा-लम्बा करके समझाया है।
प्रश्न ११०-~-राग- उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान करण से हुआ है इसको मानने से क्या लाभ हुआ ?
उत्तर-जैसे-राग-उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपा. दान कारण से हुआ है। वैसे ही विश्व मे जितने भी कार्य हैं वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही हो चुके है, हो रहे हैं और भविष्य मे होते रहेगे । ऐसा केवली के समान सच्चा ज्ञान हो जाता है।
प्रश्न १११-विश्व मे जितने भी कार्य हैं वे सब उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण से ही हो चुके हैं, हो रहे हैं और भविष्य में होते रहेगे। ऐसा केवली के समान सच्चाज्ञान होते ही क्या-क्या अपूर्व कार्य देखने मे आता है ?
उत्तर--(१) अनादिकाल की पर मे करूं-धरूं की खोटी बुद्धि का अभाव होना। (२) दृष्टि अपने ज्ञायक स्वभाव पर आना। (३) सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम से वृद्धि करके मोक्ष लक्ष्मी का नाथ होना। (४) मिथ्यात्वादि ससार के पाँच कारणो का अभाव होना। (५) द्रव्य-क्षेत्र-काल-भव-भावरूप पचपरावर्तन का अभाव होकर पच परमेष्टियो मे उनकी गिनती होना।
प्रश्न ११२-विश्व में प्रत्येक कार्य उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादानकारण से ही होता है। तन कौन-कौन सी चार बातें एक साथ एक ही समय में नियम से होती है ?
उत्तर-(१) उस समय पर्याय की योग्यता क्षणिक उपादान कारण