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________________ ( ५८ ) प्र० ४२. आप गुणों के समूह को ही द्रव्य कहते हो, परन्तु भगवान ने (१) गुण पर्ययवत् द्रव्यम् । (मोक्षशास्त्र अध्याय ५ सूत्र ३८) (२) गुण पर्यय समुदायो द्रव्यम् (पचाध्यायी भाग १ ग! ७२) (३) गुण समुदायो द्रव्यम् । (पंचाध्यायी भाग १ गा० ७३) (४) तथा समगुण पर्यायो द्रव्यम् ( , ) (५) द्रव्यत्वयोगाद द्रव्यम् । द्रव्य की परिभाषा कहो है वह क्यों ? उ. इनमें से किसी एक को जब मुख्य करके कहा जाता है तब शेष लक्षण भी उसमें गभित रूप से आ ही जाते हैं इसलिए प्राचार्यों ने दूसरे प्रकार से द्रव्य का लक्षण कहा है। भाव सबका एक ही है-ऐसा जानना । प्र० ४३. अन्य मिथ्यादृष्टि लोग अपनी महिमा किस किस से मानते हैं ? उ० (१) मैं पुत्र वाला (२) मैं स्त्री वाला (३) मैं रुपया पैसा बाला (४) मैं सुन्दर रूप वाला (५) मैं क्षमावाला (६) मैं महाव्रती (७) मैं अणुव्रतो (८) मैं ऐलक क्षुल्लक मुनि हूँ (8) मैंने स्त्री पुत्रादि का त्याग किया है अदि अप्रयोजनभूत बातों में अपनी महिमा मानते हैं । मैं अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड भगवान हूँ इससे अपनी महिमा नहीं मानते हैं। प्र० ४४. भगवान ने आत्मा की महिमा किससे बताई है ? उ० गुणों के समूह से आत्मा की. महिमा बताई है, पर और विकारी भावों से नहीं। प्र० ४५. भगवान ने गुणों के अभेद पिण्ड को अनुभव करने से ही आत्मा की महिमा क्यों बताई ? उ० गुणों के अभेद पिण्ड को अनुभव करने से मिथ्यात्व का अभाव
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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