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( ५७ ) 'उसे अनुभव का प्रयत्न करना । और यदि उसके बदले बाहरी क्रियाओं विकारी भावों में लग जावे तो प्रात्मा का अनुभव नहीं होगा बल्कि चारों गलियों में घूमता हुअा निगोद चला जावेगा । प्र.) ३७. क्या प्रमात्मा का अनुभव हुषे बिना पूजा यात्रा अणुव्रतादि कुछ भी कार्यकारी नहीं है ? उ० प्रात्मा का अनुभव हुवे बिना अरण्यरोदन है, कुछ भी कार्यकारी नहीं है बलिक अनर्थकारी है। छहहाला में कहा है :
(१) निव्रत धार यानंन बार ग्रीवक उपजायो, ।
पनिजाग ज्ञान बिना सूख लेश न पायो । (२) समयमारजी में १५४ गाथा में नपुंसक कहा है। (३) मोक्षमार्ग प्रकाशक में मिथ्याटि पापी असंयमी कहा है। (४) प्रवचनसार २७१ में संसार का नेता कहा है।
(५) रत्नकरण्ड श्रावकाचार में नीच कहा है। प्र० ३८. विश्व में अज्ञानी को कितने द्रव्य दिखते हैं ? उ० एक भी नहीं दिखता । (समयसार कलश पहला देखो) प्र० ३६. भगवान ने द्रव्य का स्वरूप पहिले क्यों बताया ? उ० अनादिकाल से चैतन्य प्रात्मा अपना द्रव्य है उसके संबंध में भूल है इसलिए द्रव्य को पहिले बताया है । प्र० ४७. अहानी लोग द्ररा किसे कहते हैं ? उ० रुपया, सोना, चान्दी को द्रव्य कहते हैं । प्र० ४१. भगवान ने द्रव्य किसे बताया ? उ० गुणों के समूह को द्रव्य कहा है ।