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( ५५ ) उ० (१) प्रथम निर्विकल्प दशा शुद्धोपयोग की दशा में उपशम
सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है तथा चौथे गुणस्थान में देव गुरु शास्त्र की भक्ति आदि का विकल्प हेय बुद्धि से आता है । वैसे पांचवे गुणस्थान में अणुव्रतादि का,छठे गुणस्थान
में महाव्रतादि का विकल्प हेय बुद्धि से आता है। (२) मोक्ष नहीं हुअा, परन्तु मोक्षमार्ग हुआ है तो वहां चारित्र
गुगा की पर्याय में दो अंश हो जाते हैं, शुद्धि प्रश और अशुद्धि अश। तो अशुद्धि का ज्ञान कराकर स्वभाव का प्राश्रय पूर्ण करके उमका अभाव करे इसलिए भूमिकानुसार यात्रा अगुव्रतादि विकल्प होता है तो बोलने की
भाषा में पालन करो-ऐसा कहा जाता है। प्र० ३३. कैसा करने से सम्यग्दर्शन होता है, और कैसा करने से सम्यग्दर्शन नहीं होता ? उ० मैं अनन्त गुग्गों का अभेद पिण्ड हूँ ऐसा अभेद का आश्रय करने मे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है और देव गुरु शास्त्र का दर्शन मोहनीय के क्षयादि की ओर दृष्टि करने से सम्यग्दर्शन नहीं होता है। प्र० ३४. कैसा करने से थावकपना नही पाता है ? उ० सम्यग्दर्शन के बाद अनन्त गगों के अभेद पिण्ड का प्राश्रय बढ़ाने से शुद्धोपयोग दशा में श्रावकपना पाता है और अणुव्रतादि बाहरी क्रियाओं और शूभभावों से कभी भी श्रावक पना नहीं पाता है। प्र० ३५. कैसा करने से मुनिपना थेगीपना आता है और कैसा करने से श्रेणोपना नहीं पाता है ? उ० सम्यग्दर्शनादि होने बाद चौथे या पांचवें गुणस्थान में अपने गुणों