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________________ ( ५४ ) आदि सब अनुयोगों में मोक्ष का उपाय एक हौ है । प्र० ३०. कैसा करने से जीव कभी मुक्त नहीं होगा ? उ० (१) अपनी आत्मा के प्रलावा अनन्त आत्माओं का अनन्तनंत पुद्गलों का धर्म ग्रधर्म आकाश और लोक प्रमाण असंख्यात काल द्रव्यों का ग्राश्रय लेने से कभी भी मुक्त नहीं होगा इसलिए हटाओ दृष्टि, पर द्रव्य के अस्तित्व से । (२) हिसादि अशुभभावों और दयादानपू, जा, यात्रा अणुव्रत महाव्रत व्यवहार रत्नत्रयादि के आश्रय से कभी भी मुक्त नहीं होगा, इसलिए हटाओ दृष्टि विकारी पर्याय के अस्तित्व से । (३) अपूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्याय एक समय की होती है इसलिए हटावो दृष्टि पूर्ण पूर्ण शुद्ध पर्याय के अस्तित्व से । ( ४ ) एकमात्र अनन्त गुणों के पिण्ड ज्ञायक भगवान पर ही दृष्टि उ० देने से धर्म की शुरूआत वृष्टि और पूर्णता होती है इसलिए एकमात्र त्रिकाली ज्ञायक स्वभाव के अस्तित्व पर दृष्टि लगावो तो कल्याण होगा । प्र० ३१. सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र श्रेणी अरहंत सिद्ध दशा के लिए किसका आश्रय करें ? एकमत्र अपने अनंत गुणों के प्रभेद पिण्ड पर दृष्टि देने से ही सम्यग्दर्शनादि श्रेणी अरहंत और सिद्ध दशा की प्राप्ति होती है । प्र० ३२. जब मैं अनंत गुणों का अभेद पिण्ड ज्ञायक भगवान हूँ, ऐसा दृष्टि में लेते ही धर्म की शुरूआत, वृद्धि और क्रमश: पूर्णता होती है तो भगवान के दर्शन करो, पूजा करो, यात्रा करो, शास्त्र पढ़ो, अरणुव्रत महाव्रत व्यवहार रत्नत्रयादि पालों का उपदेश क्यों है ?
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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