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( ५२ ) उ. हम अपने अनन्त गुगों के पिटारे को ओर दृष्टि करें तो जीवन में सुख शान्ति की प्राप्ति होवे। प्र० २२. गुगों के समूह को द्रव्य कहते हैं इसको जानने से क्या लाभ है ? उ० जैसे एक गुफा में छह मुनि बैठे हैं (१) एक ध्यान में लीन है । (२) दूसरा स्वाध्याय में रत है । (३) तीसरा आहार के निमित्त जा रहा है । (४) चौथा पाठ कर रहा है। (५) पांचवां सामायिक कर रहा है। (६) छठे को सिंह खा रहा है। तो वहाँ पर एक को दूसरे से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है, उसी प्रकार लोकाकाश रूपी गुफा में प्रत्येक द्रव्य अपने अपने द्रव्य में अन्तर्मग्न रहने वाले अपने अपने अनन्त धर्मों के चक्र को चुम्बन करते हैं, स्पर्श करते हैं तथापि एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं। ऐसा जानकर अपने गगगों के सम ह की अोर सन्मुख होवे तो सम्यदर्शन ज्ञान चारित्र की प्राप्ति होवे, तो गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं समझ में पाया कहलावेगा अन्यथा तोते के समान रटन्त कार्यकारी नहीं है । प्र० २३. जब सब द्रव्यों के पास अनंत अनन्त गुग हैं तब यह जीव पर की ओर क्यों देखता है ? उ० (१) जिनेन्द्र भगवान की प्रोजा का विश्वास ना होने से और चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना अच्छा लगता है इसलिए पर और विकार की ओर देखता है । प्र० २४. जिनेन्द्र भगवान की प्राज्ञा का विश्वास करने के लिए और चारों गतियों से छूटने के लिए क्या करना ? उ० अपने अनन्त गुणों के पिण्ड का प्राश्रय श्रद्धान ज्ञान रमणता करनी चाहिये । ऐसा करने से संबर निर्जरा का प्राप्ति होकर निर्वाण की प्राप्ति होती है।