________________
( ५१ )
प्र० १५. जब सिद्ध भगवान में और हमारे गुग्गों में कुछ भी अन्तर नहीं है तो उनके और हमारे गुणों में क्या फरक रहा ? गुग्गों की अपेक्षा कोई अत्तर नहीं है ।
प्र० १६. हमारे में और सिद्ध भगवान में गुणों में अन्तर नहीं है तो अन्तर किसमें है ?
उ०
मात्र पर्याय में अन्तर है द्रव्य गुरण में ग्रन्तर नहीं
प्र० १७. हम सिद्ध बनने के लिए पर्याय के अन्तर को कैसे दूर करें ? जैसा सिद्ध पर्याय में बनने से पहले सिद्ध भगवान ने किया वैसा करें तो पर्याय का अन्तर दूर होकर हम भी पर्याय में सिद्ध बन सकते हैं । प्र० १८. सिद्ध बनने से पूर्व सिद्ध की ग्रात्मा ने विकारी पर्याय को कैसे दूर किया ?
उ०
उ०
उ० मैं अनन्त गुणों का अभेद पिण्ड हूं, पर राग विकार का पिण्ड नहीं हूँ ऐसा जानकर आपने अभेद पिण्ड का आश्रय लिया तो वह सिद्ध बन गये और विकार का प्रभाव हो गया ।
प्र० १६. अब हम सिद्ध बनने के लिए क्या करें ?
अपने अनन्त गुणों के पिण्ड का आश्रय लेना चाहिए । प्र० २०. गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं जरा दृष्टांत देकर समझाइये ? जैसे यहां पर छह आदमी बैठे हैं प्रत्येक के पास अटूट २ धन है किसी के पास भी कम या ज्यादा नहीं है क्योंकि किसी के पास कम होवे, तो दूसरे से मांगना पड़े, और ज्यादा होवे तो दूसरे को देने की बात
उ०
उ०
वे । उसी प्रकार विश्व में जाति अपेक्षा छह द्रव्य हैं प्रत्येक के पास अनन्त अनन्त गुणों का पिटारा है किसी पर भी कम ज्यादा गुण नहीं है । प्र० २१. प्रत्येक के पास अनन्त गुणों का पिटारा है किसी पर भी कम ज़्यादा गुण नहीं हैं इसको जानने से क्या लाभ है ?