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पाठ ७ काल द्रव्य
प्र. १. काल द्रव्य किसे कहते हैं ? उ० अपनी अपनी अवस्था रूप से स्वयं परिणमते हुए जीवादिक द्रव्यों के परिणमन में जो निमित्त हो, उसे काल द्रव्य कहते हैं। जैसे कुम्हार के चाक के घूमने के लिए लोहे को कोली। प्र० २. काल द्रव्य सब द्रव्यों को परिण माता है ना ? उ० बिल्कुल नहीं। सब द्रव्य अपनी २ अवस्थारूप से बदलते हैं तब उसमें निमित्त काल द्रव्य है। प्र० ३. जब सब द्रव्य अपनी २ अवस्थारूप से स्वयं परिणमते हैं तब काल द्रव्य निमित्त है उसे बताने की क्या आवश्यकता थी ? उ० जहां उपादान होता है वहाँ निमित्त होता ही है ऐसा वस्तु का स्वभाब हैं ऐसा ज्ञान कराने के लिए निमित्त को बतलाने की आवश्यकता है । प्र० ४. काल द्र व्य को समझाने के लिए कीली का दृष्टांत क्यों दिया है? उ० लोकाकाश के एक २ प्रदेश पर एक २ काल द्रव्य अनादि अनंत स्थिर है इसलिए कीलो का दृष्टांत दिया है। प्र० ५. कालद्रव्य के कितने प्रदेश है ? उ० एक प्रदेशी है बहुप्रदेशी नहीं है । प्र० ६. कई शास्त्रों में काल द्रव्य को 'अप्रदेशी' क्यों कहा है ? उ० एक गिनती में न आने से काल द्रव्य को अप्रदेशी कहा है।