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________________ ( ४३ ) प्र० १४. आकाश द्रव्य की पहिचान क्या है ? अवगाहन हेतुत्व इत्यादि । प्र० १५. आकाश द्रव्य का द्रव्य क्षेत्र काल भाव क्या है ? (१) आकाश नाम का द्रव्य है । (२) अनन्त प्रदेशी प्रकाश का क्षेत्र है । (३) उसका परिणमन वह काल है । (४) उसके अनन्त गुरण वह उसका भाव है । प्र० १६. आकाश द्रव्य को मूर्तिक कहें तो क्या दोष आता है ? असंभव दोष आता है । उ० उ० उ० प्र० १७. आकाश का लक्षण मूर्तिक कहें तो ठीक है ना ? प्रतिव्याप्ति दोष आता है । उ० प्र० १८. आकाश को जगह देने में कौन निमित्त है ? स्वयं ही स्वयं को निमित्त है । उ० प्र० १६. आकाश को चलने में कौन निमित्त है ? आकाश चलता ही नहीं, तब कौन निमित्त, यह गलत है । प्र० २०. आकाश के ठहरने में तो अधर्म द्रव्य निमित्त है ना ? बिल्कुल नहीं। क्योंकि जो चलकर स्थिर हो ऐसे जीव और पुद्गल को ही अधर्म द्रव्य ठहरने में निमित्त है । जो अनादि अनन्त स्थिर है उसमें निमित्त कौन, यह गलत है क्योंकि उपादान हो तब निमित्त होता है । उ० उ० प्र० २१. आकाश के परिणमन में कौन निमित्त है ? काल द्रव्य । प्र० २२. प्रदेश किसे कहते हैं ? उ० उ० आकाश के सबसे छोटे भाग को प्रदेश कहते हैं ।
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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