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( ३६ ) प्र० २७. धर्म अवर्म द्रव्य का लक्षण जड़ कहें तो क्या दोष आता है ? उ० अतिव्याप्ति। प्र० २८. धर्म अधर्म द्रव्य को चेतन कहें तो क्या दोष पाता है ? उ० असभव । प्र० २६. धर्म अधर्म द्रव्य का लक्षण बह्मदेशी कहं तो ? उ० अतिव्याप्ति दोप पाता है । प्र.) ३०. धर्म अधर्म की विशेषता क्या है ? उ० (१) नित्य है, (२) अवस्थित है, (:) अरूपी है, (४) हलन चलन रहित है। प्र० २१. धर्म अधभ द्रव्य का लक्षग नित्य अवस्थित अरूपी और हलन चलन रहित कहें तो ठीक है ना ? उ० प्रतिव्याप्ति दोप अाता है । प्र० ३२. धर्म द्रव्य को चलाने में कौन निमित्त है ? उ० धर्म द्रव्य चलता ही नहीं तब निमित्त कौन है, यह प्रश्न भूटा है । प्र० ३३. धर्म अधर्म द्रव्य को ठहराने में कौन निमित्त है ? उ. यह तो अनादि अनन्त ठहरे हुए ही हैं उमलिए टहराने में कौन निमित्त है, यह प्रयन अविवेकपूर्ण है। प्र० ३४. धर्म अधर्म को जगह देने में कौन निमित्त है ? उ० ग्राकाग द्रव्य । प्र० : ५. धर्म अधर्म द्रव्य के परिगमाने में कौन निमित्त है ? उ० कालद्रव्य । प्र० ३६. सिद्ध जीव लोक के आगे क्यों नहीं जाते, तो कहा है "धर्म द्रव्य