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( ४० )
के प्रभाव होने से" आप कहते हैं एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में कुछ करता ही नहीं तो क्या तत्वार्थ सूत्र में गलत लिखा है ?
उ०
(१) जो जीव धर्म द्रव्य को मानते ही नहीं उसकी अपेक्षा कथन किया है ।
( १ ) यह व्यवहार कथन है ।
प्र० ३७. तो फिर सिद्ध जीव अलोक में क्यों नहीं जाते ?
सिद्ध जीव लोक का द्रव्य है इसलिए अलोक में नहीं जाता । प्र० ३८. धर्म अधर्म द्रव्य को जानने से क्या लाभ है ?
(१) शास्त्रों के पढ़ने से पहिले अज्ञानी ऐसा मानता था कि मैं शरीर को चलाता हूं या शरीर मुझे चलाता है । ठहराता है ।
उ०
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( ३ ) शास्त्र पढ़कर अज्ञानी ने निकाला धर्म द्रव्य चलाता है और धर्म द्रव्य ठहराता है। सच्चा ज्ञान होने पर इस खोटी बुद्धि का प्रभाव हो जाता है ।
(३) मैं आत्मा हूं धर्म अधर्म द्रव्य से मेरा किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है ऐसा जानकर अपने में स्थिर होवे तो धर्म अधर्म को जाना ।