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________________ ( ३७ ) प्र ११. हम बम्बई से देहली आये, तो इसमे शरोर तो अपनी क्रियावतो शक्ति से आया लेकिन मेरा भाव निमित्त तो है ना ? उसने अधर्म द्रव्य को उड़ा दिया । उ० प्र० १२. हम ध्यान करने बैठे तो शरीर तो अपनी क्रियावती शक्ति के कारण स्थिर हुआ परन्तु मैं निमित्त तो हूं ना ? उसने अधर्म द्रव्य को उड़ा दिया । उ० प्र० ११. 'उपकार' शब्द का क्या अर्थ है ? उ० प्र० १४. धर्म द्रय अधर्म द्रव्य हमको दिखाई नहीं देते हैं इसलिए हम नहीं मानते हैं ? उपकार, निमित्त, सहायक आदि पर्यायवाची शब्द हैं । उ० अरे भाई, तुम्हारे पड़दादा दादा वर्तमान में तुम्हें दिखाई नहीं देते, वह थे या नहीं ? तो कहता है वह तो थे । सर्वज्ञ भगवान के ज्ञान में प्रत्यक्ष प्राये हैं और अनुमानादि से यह हैं ऐसा पात्र जीव भी जानता है इसलिए हमें दिखाई नहीं देते इसलिए हम नही मानते, यह गलत है । प्र० १५. धर्म अधर्म द्रव्य को अमूर्त स्वभावी क्यों कहा ? स्पर्श रस गंध व ना होने से अमूर्त स्वभावी कहा है । प्र० १६. धर्म द्रव्य का क्षेत्र कितना बड़ा है ? लोकव्यापक असंख्यात प्रदेशी है । उ० उ० प्र० १७ धर्म अधर्म द्रव्य के कितने २ हिस्से हो सकते हैं ? 30 जो द्रव्य है वह प्रखंड होता है उसके हिस्से नही हो सकते इस लिए धर्म अधर्म द्रव्य के हिस्से नहीं हो सकते हैं । प्र० १८. क्या धर्म अधर्म द्रव्य में भी उत्पाद व्यय श्रीव्यपना होता है ? होता है, क्योंकि द्रव्य का लक्षरण सत् है और जो सतु होता है उ‍
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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