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रूप परिणमन के कारण चलते हैं धर्म द्रव्य के कारण नहीं । धर्म द्रव्य तो निमित्त मात्र है ।
प्र० ६.
उ०
रूप परिणमन के कारण ठहरते हैं अधर्म द्रव्य के कारण नहीं । अधर्म द्रव्य तो निमित्त मात्र है ।
अधर्म द्रव्य जीव और पुद्गलों को ठहराता है ना ? बिलकुल नहीं । जीव पुद्गल अपनी २ क्रियावती शक्ति के स्थिर
प्र० ७. चलने और स्थिर होने की शक्ति कितने द्रव्यों में है ? मात्र पुद्मल श्रौर जीव में ही है और द्रव्यों में नहीं है । क्रियावती शक्ति किसे कहते हैं ?
उ०
प्र० ८.
उ०
जीव और पुद्गल में अपनी २ क्रियावती शक्ति नाम का गुरण है वह नित्य है, उसकी अपनी २ योग्यता से कभी गति रूप कभी स्थिर रूप पर्याय होती है ।
प्र० ६.
उ०
क्रियावती शक्ति गुण की कितने प्रकार को पर्याय होती हैं ? दो प्रकार की होती है— गमन रूप और स्थिति रूप ।
प्रo १०. जब जीव और पुद्गलों में स्वयं चलने और स्थिर होने को शक्ति है तब शास्त्रों में धर्म अधर्म द्रव्य का वर्णन क्यों किया ।
उ०
( १ ) उपादान निज गुण जहां तहां निमित्त पर होय । भेदज्ञान प्रवारण विधि, बिरला बूझ कोय ॥ (२) प्रवचनसार गा० ६५ में भी लिखा है कि " जिसके पूर्व अवस्था प्राप्त की है ऐसा ( उपादान ) द्रव्य भा जो कि उचित बहिरंग साधनों के सान्निध्य (निकटता, हाजरी) के सद्भाव में अनेक प्रकार की बहुत सी अवस्थाएं करता है ।"