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उ० (१) पुद्गल में क्रि यावती शक्ति होने से वह चलता है ।
(२) पुद्गल के चलने में निमित्त है धर्म द्रव्य। प्र० ८२. पुद्गल के ठहरने में निमित्त कौन है ? उ० अधर्म द्रव्य । प्र. ८३. पुद्गल को अवकाश देने में कौन निमित्त है ? उ० अाकाश द्रव्य । प्र० ८४. पुद्गल के परिणमन में कौन निमित है ? उ० कान द्रव्य । प्र० ८५. पुद्गल के कार्यों को अपना माने वह कौन है ? उ० मिथ्याप्टि, पापी, जिनमत से बाहर है। प्र० ८६. बंध को विटोपता क्या २ हैं ?
(१) एक प्रदेश में अनेक रहते हैं । (२) लोकाकाश के एक प्रदेश में सब परमागु और सूक्ष्म स्कंध
समा सकते हैं। (३) एक महा स्कंध लोक प्रमाण असंख्यात लोकाकाश के प्रदेशों
को रोकता है। प्र० ८७. रूपी कौन है और रूपी कौन नहीं है ? उ० पुद्गल द्रव्य रूपी है बाकी द्रव्य रूपी नहीं है, अरूपी हैं । प्र० ८८. पूण्य पाप का फल जीव का कार्य है ना ?
पुण्य पाप फल माटी, हरख बिलखौ मत भाई । यह पुद्गल पर जाय, उपजि विनमै थिर नाई । लाख बात की बात यही, निश्चय उर लावो । तोरि सकल जग दंद-फंद, नित प्रातम ध्यानो।