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________________ ( ३१ ) उ० मेरा बदन रूखा, कड़ा है ऐसा जानकर द्वेष करता है और चिकना नर्म से राग करता है । उ० प्र० ६०. रूखा चिकना, कड़ा, नर्म संबंधी रागद्वेष का प्रभाव कैसे हो ? मैं आत्मा रूखा, चिकना, वड़ा नर्म स्पर्श गुगण रहित अस्पर्श स्वभावो भगवान ग्रात्मा हूं ऐसा जाने माने तो रागद्वेष का प्रभाव हो । प्रo ६१. खट्टा मीठा, करवा, कपायला, चरपरा क्या है ? पुद्गल द्रव्य के रस गुण की पर्याय हैं । उ० प्र० ६२. अज्ञानी खट्टा मीठा, कडवा, चरपरा, कपायले को जानकर क्या करता है ? रागद्वेष करता है । प्र ६३. ग्रज्ञानी खट्टा मीठा, क ुवा, चरपरा कपायला को जानकर रागद्वेष कैसे करता है ? उ० मुझे नीम्बू खट्टा अच्छा लगता है, पेड़ा मीठा लगता है, नीम के पत्त कड़वे लगते हैं, आदि में जिसमें त्रि हो राग करता है और जिसमें अरुचि हो द्वेष करता है । उ प्रo ६८. रस की पर्याय से रागद्वेष का प्रभाव कैसे हो ? 30 मैं आत्मा, खट्टा मीठा, कड़वा, चम्परा, कपायला रस गुग्ण की पर्यायों से रहित ग्रम्म स्वभावी भगवान हूं ऐसा अनुभव ज्ञान करे तो रागद्वप का प्रभाव हो । प्रo ६५. सुगन्ध और दुगंध गंध गुग्गा की पर्यायों मे अज्ञानी रागद्वेप कैसे करता है ? (१) विटा आदि में द्वंप करता है (२) फूल यादि सुगंधी में राग करता है । उ०
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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