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प्र० ५३. अपने ग्राप का पता न होने से अज्ञानी स्पर्श गुग्ण की हल्के भारी पर्याय को ही, (१) मैं हल्का है तो द्वेष करता है, और भारी होने के लिए पिस्ता, वादाम यादि खाता है तो राग करता है । (२) यदि अपने आपको भारी मानना है चला नहीं जाता है तो द्वेष करता है हल्का होने पर राग करत है ।
प्र० ५०. उस हल्का भारी में जो रागद्वेष होता है इसका प्रभाव कैसे हो ? मैं आत्मा, हल्का भारी स्पर्श रहित प्रस्पर्श स्वभावी हूं ऐसा जाने माने तो राग का अभाव हो ।
उ०
प्र० ५४. ठण्डा गरम क्या है ?
उ०
ठंडा गर्म पुद्गल द्रव्य के स्पर्श गुण की पर्याय है ?
प्र० ५५. प्रज्ञानी जीव ठंडा गरम को जानकर रागद्वेप कैसे करता है ? (१) मुझे ठण्डी का बुखार है, मुझे गर्मी का बुखार है ऐसा जानकर द्वेष करता है ।
उ०
(२) किसी को हैजा हो जावे और बुखार हो जावे तो राग करता है ।
प्र० ५७. ठंडा गर्म संबंधी रागद्वेष का प्रभाव कैसे हो ?
उ०
मैं आत्मा, ठंडा गर्म स्पर्श गुरण रहित अस्पर्श स्वभावी भगवान आत्मा हूं ऐसा जाने माने तो रागद्वेष का प्रभाव हो ।
उ०
प्र० ५८. रूखा, चिकना, कड़ा, नर्म क्या है ?
पुद्गल की स्पर्श गुरण की पर्याय है ।
प्र० ५६. अज्ञानी जीव रूखा, चिकना, कड़ा, नर्म को जानकर रागद्वेष कैसे करता है ?