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वर्ण पाया जावे वह रूपी है ।
प्र० ३०. पुद्गलों में बंध क्यों होता है ?
उ०
पुद्गल के स्पर्श रस गंध वर्णादि विशेष गुणों में से स्पर्श गुण की दोश ही अधिक हो वहाँ स्निग्ध का स्निग्ध के नाथ, रुक्ष का रुक्ष के साम, तथा स्निग्ध रुक्ष का परस्पर बंध होता है और जिसमें अधिक गुण हों उस रूप से समस्त स्कंध हो जाता है । इस प्रकार पुद्गलों के बंध की बात है। पुद्गल के बन्ध में जीव से किसी भी प्रकार का कर्ता-कर्म भोक्ता - भोग्य संबंध नहीं है । तब उसने पुद्गल के बन्ध को जाना।
( २७ )
प्र० ३१. पुद्गलों का बन्ध कब नहीं होता है ?
उ०
जिस पुद्गल की स्निग्धता या रुक्षता जघन्य रूप से हो वह बंध के योग्य नहीं है । (२) एक समान गुणवाले पुद्गलों का बंध नहीं होता है प्र० ३२. तुम परमाणु हो या स्कंध ?
उ०
परमाणु और स्कंध पुद्गल के भेद हैं मैं तो जीव द्रव्य हूं ।
प्र० ३३. शरीरों के कितने भेद हैं ?
उं० पांच हैं । १. औदारिक २. वैक्रियक ३. ग्राहारक ४. तेजस और
५ कार्मारण ।
उ०
प्र० ३३. प्रौदारिक शरीर का कर्ता कौन है, श्रौर कौन नही ? दारिक शरीर का कर्ता आहार वर्गगा है, जीव नहीं । प्र० ३५. वैक्रियक शरीर का कर्ता कौन है, और कौन नहीं ?
उ०
उ० वैकियक शरीर का कर्ता श्राहार वगंगा है, और देव नारकी
नहीं ।
प्र० ३६. आहारक शरीर का कर्ता प्रहारक ऋद्धिधारो मुनि है ना ? आहारक शरीर का कर्ता प्रहार बर्गरगा है, मुनि नहीं ?