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( २६ ) उ० (१) दस दवाई मिलाकर मैंने चूर्ग बनाया, (२) घो चीनो मे मैंने हलवा बनाया प्रदि कथनों में चूर्ग, हलवा पुद्गलास्तिकाय के 'काय' के कारण बना, मेरे कारण नहीं। तब पुद्गलास्तिकाय के 'काय' को न.ना। प्र० २५. पुद्गलास्तिकाय से क्या समझना चाहिए ? उ० (१) पुद् (२) गल (३) अस्ति (८) काय, यह सब पुद्गल का स्वभाव है इनमे मेरा किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है । लेकिन प्रज्ञानी पुद्गल का कार्य पुदगल से न मानकर पुद्गलास्तिकाय को उड़ाता है हम एसी गलती न करें । पुदगल का कार्य पुद्गल से ही जाने तो मिथ्यात्व का अभाव होकर धर्म की प्राप्ति हो । प्र० २६. पुद्गल द्रव्य कितने हैं ? उ० पुद्गल द्रव्य अनंतानंत हैं । प्र. २७. पुद्गल द्रव्य अनन्तानन्त हैं, कब माना ? उ०" एक २ परमाणु अनन्त गुण और पर्यायों का पिण्ड है। एक पर. मारगु का द्रव्य क्षेत्र काल भाव दूसरे परमाणु से पृथक है। जैसे एक किताब है, घड़ी है, लड़ है, यह स्कंध हैं इनमें एक २ परमाणु अपने अपने अनन्त गुग्गों पर्यापों महित वर्तता है ऐमा ज्ञान होवे और जब एक परमाणु दूसरे परमाणु में कुछ नहीं करता तो मेरे में करने धरने का प्रश्न ही नहीं तब पुद्गल द्रव्य अनन्तानन्त हैं तब माना । प्र० २८. पुद्गल द्रव्य कितने प्रदेशी हैं ? उ० प्रत्येक पुद्गल एक प्रदेशी है । प्र०२६. पुद्गल द्रव्य रूपी है या अरूपी है ? उ० पुद्गल द्रव्य रूपी है अरूपी नहीं है क्योंकि जिसमें स्पर्श रस गंध