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( २५ ) इसलिए दूध मिट्टी में मिल गया (बिखर गया) परन्तु दूध जो बिखरा वह पुद्गलास्तिकाय के 'गल' के कारण । ऐसा न मानकर बच्चे को प्रसावधानी दूढे तो उसने 'गल' को नहीं माना। प्र० २०. 'गल' को कब माना। उ० जैसे मैंने लड्डु के दो टुकड़े कर दिए, मैंने कलम के दो टुकड़े कर दिए , मैंने सावधानी न रक्खी तो दूध निकल गया प्रादि कथनों में लड्डु और कलम के टुकड़े करना, दूध निकलना-वह 'गल' के कारण निकला, मेरे कारण नहीं, ऐसा ज्ञान वर्ते तो पुद्गलास्तिकाय के 'गल' को माना । प्र. २१. 'अस्ति' अर्थात् होना से क्या तात्पर्य है ? उ० जैसे (१) मैं हूँ तो शरीर है। (२) मैं हूँ तो शरीर का कार्य होता है । (३) ज्ञान है तो प्रांख है प्रादि में अज्ञानी ऐसा मानता है कि शरीर है शरीर का कार्य है, अांख है यह सब प्रात्मा के कारण है तो उसने पुदगलास्तिकाय का 'मस्ति' पना नहीं माना । प्र० २२. 'अस्ति को कब माना ? उ० शरीर, प्रांख, कान, मन वाणो प्रादि के पुदगलास्तिकाय के प्रस्तिपने के कारण हैं मेरे कारण नहीं । तब 'प्रस्ति' को मामा । प्र० २३. काय अर्थात् समूह इकट्ठा होना से क्या तात्पर्य है ? उ० जैसे लड़की को शादी में हलवाई बून्दी बना देता है और भाई जाते है तो बून्दो के लड्डू बनाकर रख देते हैं । वास्तव में वह पुद्गलास्तिकाय के 'काय' के कारण बने। प्रज्ञानी मानता है मैंने बनाये तो उसने 'काय' को नहीं माना। प्र० २४. 'काय' को कब माना ?