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( २१ ) (१) द्रव्य का लक्षण अस्तित्व है सब द्रव्यों पर लागू होता है । (२) त्रिकाल कायम रहकर प्रत्येक समय में पुरानी अवस्था का
ज्यय और नई अवस्था का उत्पन्न करना । सब द्रव्यों पर
लागू होता है। (३) द्रव्य अपने गुगा अवस्था वाला है, सब द्रव्यों पर लागू होता
(४) द्रव्य के निजभाव का नाश नहीं होता इसलिए नित्य है
और परिगा मन करता है इसलिए अनित्य है। यह भी सब
द्रव्यों पर लागू होता है । प्र० ५०. जीव का लक्षण अगुव्रत पालना, क्या दोष पाता है ? उ० अव्याप्ति दोप पाता है। प्र० ५१. जीव का लक्षण मामान्य विगेप गुणवाला कहें तो? उ० प्रतिव्याप्ति दोप पाता है । प्र० ५२. जीव का लक्षण उत्पादव्यय ध्र व वाला कहें तो? उ० अतिव्याप्ति दोप पाता है । प्र० ५३. छः ढाला में जीव का लक्षण क्या कहा है ? उ० जीव का लक्षगग जाता दृष्टा है, अाँख, नाक, शरीर मूर्तिक नहीं है चैतन्यरुपा उसकी मूर्ति है, उपमारहित है, पुद्गल आकाश धर्म अधर्म काल से जीव का कुछ भी संबंध नही है ऐसा बताया है। प्र० ५४. अपना लक्षण चे न्यि माने तो क्या होगा ? उ० चैतन्य लक्षण वाला मैं हूं ऐसा मानते ही सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है सुख का पता चल जाता है ।