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________________ ( २० ) प्र० ३९ असंख्यात प्रदेशी वह आत्मा, कोई दोष माता है ? प्रतिव्याप्ति दोप आता है। उ० प्र० ४० तेरा पर से होता है, तेरा तेरे से नहीं, क्या दोष जाता है ? उ० असंभव दोष आता है । प्र० ४१ लोक व्यापक सो ग्रात्मा, क्या दोष आता है ? उ० प्र० ४२ लोक में रहे सो ग्रात्मा क्या दोष आता है ? प्रतिव्याप्ति दोष आता है । 0 प्र० ४३ नित्य सो ग्रात्मा क्या दोप ग्राता है ? प्रतिव्याप्ति दोष आता है । उ० प्र० ४४ गमन करे सो जीव क्या दोष आता है ? प्रतिव्याप्ति दोष आता है । प्र० ४५. जीव के गमन में कौन निमित्त है ? धर्म द्रव्य | उ० उ प्रतिव्याप्ति दोष आता है । अव्याप्ति दोप भी आता है । प्र० ४६. जीव के स्थिर होने में कौन निमित्त है ? धर्म द्रव्य । उ० प्र० ४७. जीव के ठहरने में (अवकाश दान) कौन निमित्त है ? उ० लोकाकाश | प्र० ४८. जीव के परिणमन में कौन निमित्त है ? उ० काल । प्र० ४६. जो कानून जीव पर लागु हो वह सब द्रव्यों पर भी लागू हो उनके नाम बतायो ?
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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