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( १६ ) उपकार करना, बाल बच्चों का और स्त्री का पालन पोषण करना, रुपया कमाना कहें तो ठीक है ना ? उ० असम्भव दोष प्राता है। प्र० ३३ प्रात्मा का लक्षण दयादान पूजा अगावत महावतादि कहें तो? उ० अव्याप्ति दोष पाता है। प्र० ३४ आत्मा का लक्षण सम्यग्दर्शन कहें तो क्या दोष प्राता है ? उ० अव्याप्ति दोष पाता है । प्र० ३५ सच्चे लक्षण की क्या पहिचान है ? उ० जो लक्ष्य में तो सर्वत्र पाया जावे और अलक्ष्य में किसी भी स्थान पर ना हो वही सच्चे लक्षण की पहिचान है । प्र० ३६ ग्रात्मा का लक्षण 'चैतन्य' कहें तो क्या दोष आता है ? उ० कोई भी दोष नहीं पाता क्योंकि निगोद से लगाकर सिद्ध दशा तक सब जीवों में निरन्तर पाया जाता है, अमात्मा में नहीं पाया जाता इसलिए चैतन्य लक्षण आत्मा है इसमें कोई भी दोष नहीं आता है । प्र० ३७ तुम्हारी सत्ता कितनी है ? उ० मेरा प्रारमा गुगा और पर्याय मेरी सत्ता है । प्र० ३८ मेरी सत्ता मेरा आत्म गुण पर्याय है इसको जानने से क्या लाभ
उ०
(१) शरीर की सत्ता (२) पाठ कर्मों की सत्ता (३) विकारी
भावों को सत्ता मेरी सत्ता नहीं है ऐसा जानकर अपनी सत्ता पर दृष्टि देवे तो धर्म की शुरुअात वृद्धि होकर पूर्णता होवे।