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प्र० १.
उ०
प्र० ३.
영
कहते हैं?
प्र० २. चैतन्य किसका लक्षरण है ?
उ०
जीव द्रव्य का ।
चैतन्य से क्या तात्पर्य है ?
चैतन्य से ज्ञान दर्शन गुरण का ग्रहण होता है ।
प्र० ४. क्या चैतन्य हो श्रात्मा का लक्षण है, उसके बाकी गुणों का क्या हुप्रा ?
पाठ ३
जीव
उo चैतन्य गुण जानने देखने का कार्य करता है और गुरण जानने देखने का कार्य नहीं करते हैं भोर चैतन्य कहते ही उसके बाकी सब गुग्ग साथ में ना जाते हैं ऐसा पात्र जीव जानता है ।
प्र० ५.
नीव किसे कहते हैं ?
जिसमें चेतना अर्थात् ज्ञान दर्शन रूप शक्ति हो उसे जीव
श्री समयसार जी में आत्मा को 'ज्ञान' ही क्यों कहा है ? 'ज्ञान' कहते ही प्रात्मा का ग्रहरण हो जाता है इसलिए आत्मा को ज्ञान कहा है । ज्ञान कहते हो और गुरण भी साथ में आ जाते हैं । प्र० ६. जीव द्रव्य में सामान्य गुरण कितने हैं और कौन २ से ? अस्तित्व, वस्तुत्व श्रादि अनेक सामन्य गुरण है ।
प्र० ७. जीव द्रव्य में विशेष गुण कितने हैं और कौन से ?
उ०
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