________________ ( 205 ) (32) जन-अपने शुद्धात्मा के प्राश्रय से मोह, राग द्वष को जीतने वाली निर्मल परिणति जिसने प्रगट की है उसे जैन कहते हैं / सच्चे जैन तीन हैं-1 उत्तम-परहंत सिद्ध II मध्यम-सातवें से बारहवें गुणस्थान तक III जघन्य चौथा, पांचवां व छटा गुणस्थान / (33) कषाय-कष' अर्थात् संसार, प्राय प्रर्थात् लाभ, जिस भाव से संसार का लाभ हो उसे कषाय कहते हैं / यह जीव द्रव्य के चारित्र गुण की विभावअर्थ पर्याय है। (34) परिणमन हेतुत्व-काल द्रव्य का विशेष गुण / (35) बुखार-पुद्गल द्रव्य के स्पर्श गुण को विभावअर्थ पर्याय / (36) बुखार पर द्वेष-चारित्र गुण की विभाव अर्थ पर्याय / (37) आहारक शरीर-पाहार वर्गणा का कार्य है / (38) प्रौदारिक शरीर-आहार वर्गणा का कार्य / (36) मेज-समानजाति द्रव्य पर्याय / (४०)सुगंध-पुद्गल द्रव्य के गंध गुण को विभाव अर्थ पर्याय / प्र० 115. भगवान की वाणी सुनकर ज्ञान हुआ इसमें कौनसे प्रभाव को भूलता है ? अत्यन्ताभाव को भूलता है। उ० प्र. 116. साता वेदनीय से पैसा प्राता है कोनसे प्रभाव को नहीं माना?