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प्र० २५. प्रत्येक द्रव्य अपना २ हो स्वतन्त्र कार्य करता है ऐसा प्राचार्यकल्प पं० टोडरमल जी ने भी कहीं कहा है ? उ० मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ५२ में लिखा है "अनादिनिधन वस्तुएं भिन्न २ अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं कोई किसी के प्राधीन नहीं है कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होतो और परिगणमाने का भाव मिथ्यादर्शन है।" प्र० २६. प्रत्येक द्रव्य स्वतन्त्र रूप से परिणमन करता है, कोई किसी के परिणमित कराने से परिगमित नहीं होता और परिण माने का भाव मिथ्यादर्शन है तो शास्त्रों में पाना है (१) कर्म चक्कर कटाता है, (२) ज्ञानावर्गी ज्ञान को रोकता है. (३) अघातियां कर्म परहंत भगवान को मोक्ष में नहीं जाने देते, (४) अखि कान नाक से ज्ञान होता है, (५) गुरु से ज्ञान होता है प्रादि ऐसा कथन शास्त्रों में क्यों प्राता है ? उ० वास्तव में यथार्थ बात कहने में नहीं पा सकती है इसलिए जितना ऐसा व्यवहार का कथन है वह घी के घड़े के समान जानना । और उसका अर्थ 'ऐसा है नहीं, निमित्तादि की अपेक्षा उपचार किया है' ऐसा जानना । प्र० २७. छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं इन छः द्रव्यों में कैसा सम्बन्ध है ? उ० एक क्षेत्रावगाही सम्बन्ध है। प्र० २८. सम्बन्ध कितने प्रकार का है ? उ० तीन प्रकार का है । (१) एकक्षेत्रावगाही सम्बन्ध (२) अनित्य तादात्म्य संबंध और (३) नित्य तादात्यम्य संबंध । प्र० २९. एकक्षेत्रावगाही संबंध किसका किसके साथ है ?