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________________ ( C ) तो हमें पता चल जाता है यह सब झूठे हैं; उसी प्रकार हमने विश्व में छह जाति के द्रव्य जाने, कोई कम ज्यादा कहता है वह झूठा है। एक मात्र हम ही सच्चे हैं ऐसा ज्ञान विश्व को जानने से हो जाता है । प्र० २२. छह द्रव्यों के समूह को विश्व कहा है क्या वे आपस में मिले हुए हैं? उ० प्रत्येक द्रव्य पृथक २ रहकर अपना २ कार्य करता है वे प्रापस में मिले हुए नहीं है । प्र० २३. प्रत्येक द्रव्य अलग २ अपना २ कार्य करता है पूजा में कहीं श्राया है ? 'जड़ चेतन की सत्र परिणति प्रभु, प्रपने २ में होती है । अनुकूल कहें, प्रतिकूल कहें यही झूठो मन की वृत्ति है । ( देव गुरु शास्त्र की पूजा से ) प्र० २४. प्रत्येक द्रव्य अपना २ कार्य करता है क्या श्रीसमयसार जी में आया है ? उ० प्राया है- "लोक में सर्वत्र जो कुछ एकत्व निश्चय को प्राप्त होने से ही सुन्दरता को प्राप्त होते हैं । 'वे सब पदार्थ अपने द्रव्य में अन्तर्मग्न रहने वाले अपने अनन्त धर्मों के चक्र को चुम्बन करते हैं— स्पर्श करते हैं, तथापि वे परस्पर एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते । प्रत्यन्त निकट एक क्षेत्रावगाह रूप से तिष्ठ रहे हैं, तथापि वे सदा काल अपने स्वरूप से च्युत नहीं होते । पर रूप परिणमन न करने से अपनी अनन्त व्यक्ति नष्ट नहीं होती । इसलिए जो टंकीर्णं ती भाँति स्थिर रहते हैं और समस्त विरुद्ध कार्य तथा प्रविरुद्ध कार्य दोनों की हेतुता से वे विश्व का सदा उपकार करते हैं अर्थात् टिकाये रखते हैं । उ० श्री समयसार गा० ३ में जितने पदार्थ हैं वे सब निश्चय से
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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