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प्र० १६. फिर जब केवली के ज्ञान में आया है वैसा ही प्रत्येक द्रव्य का स्वतंत्र परिरणमन हो रहा है तब यह अज्ञानी जीव क्यों नहीं मानता ? अज्ञानी जीव को चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना अच्छा लगता है इसलिए नहीं मानता है ।
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प्र० १७. विश्व को जानने से तोमरा लाभ क्या रहा ?
जैसे हमारी जेब में छह रुपए हैं इसके बदले कोई यह कहे कि यह तो एक रुपया है, तो श्राप क्या कहेंगे ? यह झूठा है । उसी प्रकार विश्व में एक मात्र भगवान ग्रात्मा है और कुछ नहीं ऐसी मान्यता वाला एक मत है और हमने छन् द्रव्य जाने, तो वह झूठा है यह तीसरा लाभ रहा ।
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८ )
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को समस्त पर्यायनि जान है श्रद्धान करे है सो सम्यग्दृष्टि दार्शनिक श्रावक प्रथम पद धारक जानना ।
प्र० १८. विश्व को जानने से चौथा लाभ क्या रहा ?
जैसे हमारी जेब में छह रुपए हैं उसके बदले कोई पांच कहे, तो प्राप क्या कहेंगे ? यह झूठा है । उसी प्रकार हमने छह द्रव्य जाने; इसके बदले एक मत ऐसा है कि बह काल द्रव्य को छोड़कर पांच ही द्रव्य हैं ऐसा मानता है तो हमें पता चला यह भी झूठा है यह चौथा लाभ रहा । प्र० १६. एक मात्र जीव द्रव्य को कौन मानता है ?
उ० वेदान्त मत ।
प्र० २०. पांच द्रव्य को कौन मानता है ?
श्वेताम्बर ।
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प्र ० २१. विश्व को जानने से पांचवा क्या लाभ रहा ?
जैसे हमारे पास छह रुपए हैं उसे कोई कम कहे या ज्यादा कहे