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उ०
बिल्कुल नहीं । पंचास्तिकाय गा० ८१ में कहा है लकड़ी के
टुकड़ो में एक २ परमाणु पृथक-पृथक अपने २ गुण पर्यायों में वर्त रहा है ऐसा ज्ञानी जानते हैं ?
प्र) ३२. क्या निमित्त उपादान में घुसकर काम करता है ?
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प्र० ३३. शस्त्रों में प्राता है जहां एक सिद्ध बिराजमान है वहां पर प्रनन्त सिद्ध विराजमान हैं क्या सिद्ध जीव एक दूसरे में मिल गये हैं ? विल्कुल नहीं। प्रत्येक सिद्ध जीव अपने २ प्रसंख्यात प्रदेशी प्राकार में रहता है एक दूसरे में मिलता नहीं है । कोई कहे मिल जाता है तो पदे त्वगुण को नहीं माना ।
उ०
निमित्त उपादान का आकार अलग है इसमें निमित्त उपादान में घुलकर काम करता है, प्रदेशत्व गुण को नहीं माना ।
प्र० ३४. महावीर का प्राकार सात हाथ का आदिनाथ भगवान का ५०० धनुष का, वह क्यों ? प्रदेशत्व गुरण के कारण ।
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प्र० ३५. जिस स्थान में धर्म द्रव्य है उसी स्थान में प्रधर्म द्रव्य है क्या दोनों एक दूसरे में मिल गये हैं ?
उ० बिल्कुल नहीं। दोनों अपने २ प्रसंख्यात प्रदेशी श्राकार में अपने २ द्रव्य क्षेत्रकाल भाव में रह रहे हैं। कोई कहे मिल गये हैं तो प्रदेशत्व गुण को नहीं माना ।