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( १८६ ) (२) चारित्र गण पूर्ण हो गया तो ज्ञान,दर्शन, केर्य अपूर्ण है। (३) ज्ञान, दर्शन, बीर्य पूर्ण हो गया तो योग गुण विकारी है। (४) योग गुण शुद्ध होगया, क्रियावती शक्ति प्रादि गुणों में
अशुद्धि है।
पुद्गल मै स्पर्श, रस, गंध, वर्ण हैं। ग्राम खट्टा हो ऊपर से पीला हो, और मीठा हो ऊपर से हरा हो। इसलिये एक गुण का दूसरे पुरण से संबंध नहीं है, पी जानकर अपने स्वभाव का आश्रय लेना पात्र जीव का कर्तव्य है।
प्र० ११. (१) गुरू से ज्ञान की प्राप्ति हुई (२) मैं चश्मे मे पुस्तक को पढ़कर ज्ञान करता हूं (३) ब्राह्मी तेल के योग से ज्ञान बढ़ता है (४) दूध में दही मिलाने से सब दही जम जाता है (५) शास्त्र से झाब होता है । पादि वाक्यों में कौनसे गुण को नहीं माना और कब माना स्पष्ट करो ? उ० (१) गुरू से ज्ञान की प्राप्ति हुई:-गुरू और शिष्य की प्रारमा
में एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य का संबंध नहीं है तो अगरूलघुत्व गुण को नहीं माना। और ज्ञान की प्राप्ति अपने शान गुण में से हुई गुरू से नहीं तव अगुरूलघुत्व गुण को
माना। (२) मैं चश्मे से पुस्तक पढ़कर ज्ञान करता है-मेरी प्रात्मा
का चश्मे पुस्तक से संबंध नहीं है। इससे न होता है तो अगुहलघुत्व गुण को नहीं मामा । ज्ञान ज्ञान गुण से होता है, चश्मा किताव से नहीं तब प्रगुरूलघुत्व गुण को माना।