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(१४७) ऐसा जानकर अपना हित और भहित अपने से ही होता
है ऐसा यथार्थ ज्ञान हो जाता है। (२) मुझे संसार का कोई भी द्रव्यकर्म, नोकर्म हाणि लाभ
नहीं कर सकता। (३) ऐसा जानकर मैं अनादि अनंत भगवान हूँ मेरा किसी से
भी संबन्ध नहीं है, अपने स्वभाव का प्राश्रय ले तो धर्म
की प्राप्ति हो। प्र. ५. क्या द्रव्यकर्म के अनुसार जीवों में कार्य होता है ? उ. बिल्कुल नहीं । (१) दो द्रव्यों को स्वतंत्र भिन्न नहीं जाना।
(२) द्रव्य में प्रगुरूलघुत्व गुण को नहीं माना । प्र. ६. छहों द्रव्यों की गुण पर्यायों की मर्यादा की स्वतंत्रता किस गुण
उ०
अगुरूलघुत्व गुण से है। प्र. ७. अगुरूलघुत्व गुण से क्या २ पता चलता है ?
(१) एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य से किसी भी प्रकार का संबंध
नहीं है क्योंकि प्रत्येक द्रव्य का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव
पृथक पृथक है। (२) एक द्रव्य में अनंत २ गुण हैं उन अनंत गुणों का प्रापस
में भी संबंध नहीं है क्योंकि प्रत्येक गुण का भाव पृथक २