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(१४६ ) कान, शरीर के क्षेत्ररूप, सम्मेदशिखर, गिरनार
क्षेत्ररूप कभी भी नहीं होता हैं। । (३) मेरे जीव के गुणों को पर्याय अपने अपने रूप होती है
द्रव्यों के गुणों की पर्यायरूप नहीं होती है। मेरे एक की पर्याय दूसरे गुण की पर्याय रूप नहीं होती है ।
गुण की पर्याय है वह पर्याय आगे पीछे नहीं होती है (४) मेरे जीव द्रव्य के अनंत गुग्ग हैं वह जिस रूप हैं
काल उसी रूप रहते हैं कभी भी बिखरकर अलग होते हैं।
प्र० ३. यह तो आपने अपने जीव द्रव्य में प्रगुरूलघुत्व मुण के क द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की बात करी । अब पाप प्रत्येक द्रव्य के विष क्या मर्यादा है, जरा स्पष्ट रूप से समझायो ? उ० विश्व में जीव अनंत, जीव से अनंत गुणा अधिक पुद्गल हैं-धर्म, अधर्म, आकाश एक २ और लोक प्रमाण असंख्यात काल द्रव्य इनका एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य का किसी भी प्रकार का संबन्ध नहीं एक द्रव्य दूसरे द्रव्यों की अपेक्षा अद्रव्य, प्रक्षेत्र, अकाल और प्रभार है। जैसे एक पुद्गल परमाणु है उसका दूसरे पुद्गलों, जीवों, बाकी । से कोई संबन्ध नहीं है, क्योंकि अनादिनिधन वस्तु ज दी २ अपनी २ मा लिये परिणम है कोई किसी का परिणम या परिणमता नाही। प्र. ४. छहों द्रव्यों और उनके गुण पर्यायों की स्वतंत्रता जानने से
लाभ है ? उ० (१) एक द्रव्य अपने स्वचतुष्टय से है पर चतुष्टय से नहीं