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( ११४ ) उ० नहीं जाना, क्योंकि वस्तुत्व गुण का रहस्य जानते ही मोक्ष का
पथिक बन जाता है। प्र० २३. क्या द्रव्यलिंगी मुनि मोक्ष का पथिक नहीं है ? उ वह चारों गतियों में घूमता हुअा निगोद का पथिक है । प्र० २४. विश्व में ऐसी वस्तु का नाम बताओ जो अपना प्रयोजनभूत
कार्य नहीं करती हो ? उ० ऐसी वस्तु विश्व में है ही नहीं। प्र० २५. अपने कार्य के लिये दूसरे की मदद चाहने वाला किस गुण का
मर्म नहीं जानता ? उ० वस्तुत्व गुण का मर्म नहीं जानता। प्र० २६. मेरा हित मेरे से है उसने किसको माना ? उ० वस्तुत्व गुण को माना । प्र० २७. वस्तुत्व गुण का रहस्य न जाने तो क्या होगा ?
(१) सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कभी नहीं होगी। (२) जब सम्यग्दर्शन नहीं होगा तो मोक्ष का प्रश्न ही नहीं
रहा । (३) पर में करने धरने की मान्यता कर करके निगोद चला जावेग (४) दूसरा मेरा भला बुरा करे या मैं दूसरों का भला बुरा
करू ऐसी भाकुलता में ही जलता रहेगा । (५) समय समय दुःख बढ़ता जावेगा ।