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( १०३ ) इसलिये भूतकाल में जिम जीव के जैसे भाव किये। वही जीव वर्तमान में भोगता है दूसरा नहीं। इस पर से अस्तित्व की सिद्धि हो गई। प्र० ७३. व्यन्तरों से अस्तित्व की सिद्धि कैसे ? उ० किसी वाई को व्यंतर अाता था वह बोलती थी 'मैं इसकी जिठानी हूं'' यह मेरा सब माल ग्वा गई है मैं इसे नहीं छोड़ गीं। इस पर से सिद्ध हुया पहले जिठानी का जीव था वही वर्तमान में व्यंतर हा । जीव जो जिठानी में था वही व्यंतर में रहा इस प्रकार व्यंतगें से अस्तित्व की सिद्धि होती है। प्र० ७४. "अस्तित्व की सिद्धि" () मई मे (२) राग निकल जाता है जान रह जाता है (३) वृद्धपने से (८) प्रथम नुयोग से (५) नरगा। नयांग से (६) करगानुयोग से (७) द्रव्यानुयोग से (८) कमट से (६) ग्रादिनाथ भगवान में करो ? उ० सबका उत्तर जबानी दो। प्र० ७५. अस्तित्व गुगग की मिद्धि अनेक प्रकार में की। तो अभी तक
जितने लाभ अस्तित्व गृगा का जानन में पाये हे जर। वायो ? (2) मैं अजर अमर भगवान है। (२) मान प्रकार के भयों का प्रभाव हो गया। (३) ईश्वर जगत की रक्षा उत्पन्न, नान करता है इग खोटी
मान्यता का अभाव। (४) कर्म जगत की रक्षा, उत्प-न, नाग करता है इस ग्वाटी
मान्यता का अभाव ।