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( १०२ ) चरगानुयोग से (१०) करणानुयोग से (११) द्रव्यानुयोग से होती है । प्र० ७०. भगवान महावीर से अतिस्त्व की सिद्धि किस प्रकार होती है ? उ० जो ग्रादिनाथ भगवान के समय में मारीच था। वह ही कितने वार निनोद गया। वह ही शेर बना और शेर पर्याय में सम्यक्त्व प्राप्त किया। उसी जीव में नन्द राजा के भव में तीर्थंकर गोत्र बाधा । वह ही जीव महावीर २४वा तीर्थकर कहलाया। वह ही मोक्ष गया । देखो आत्मा वह का वह रहा तो अस्तित्व की सिद्धि हो गई। मिथ्यादृष्टि पर्याय दृष्टि करक पागल बना रहता है ज्ञानी स्वभावदृष्टि करके मोक्ष चला जाता है। प्र० ७१. पार्श्वनाथ भगवान मे अस्तित्व की सिद्धि किस प्रकार होती है ? उ० (१) मरूभूति के भाव में कमठ के पत्थर गिराने से मृत्यु हुई (२) यही (उमी ने) हाथी की पर्याय में सम्यग्दर्शन प्राप्त किया और सर्प के काटने से मृत्यु हुई (३) वही अग्निवेग मुनि हुया वहां पर अजगर निगल गया (४) वही ब्रजनाभि चक्रवर्ती बना (५) वही पानंद मुनि बना । (६) वही पाराधना करते २ तेईसवां तीर्थकर पाई वनाथ झा । मरूभूति से लेकर सिद्ध दशा तक वही आत्मा रहा । देखो इससे अस्तित्व की सिद्धि हो गई। प्र. ७२. जो करता है वही भोगता है इस पर से अस्तित्व की सिद्धि
उ० जैसे मनुष्य भव में शुभ भाव किये उसका फलदेव पर्याय में भोगा । द्रव्य दृष्टि से देखा जावे तो जो करता है वही भोगता है । जैसे मनुष्य पर्याय में निस जीव में शुभ भाव किये उसी जीव द्रव्य ने देवादि 'पर्याय में स्वयं किये गये फल को भोगा।