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जुदी अपनी २ मर्यादा लिये परिणमै है कोई किसी का परिणमाया परिणमता नाही " ऐसा वस्तु स्वभाव है और दूसरे को परिरणमाने का भाव मिथ्यादर्शन है २. रावण ने सीता को जैसा राम पर प्यार करती है वैसा मुझे प्यार करे ऐसे भाव के कारण तीसरे नरक गया, और जो किसी भी द्रव्य के परिणामाने का भाव करता है वह निगोद का पात्र है ।
प्र० ३३. जो वस्तु है कायम रहकर बदलना ही उसका स्वभाव है तब हम इसका ऐसा कर दें, वैसा कर दें, ऐसी मान्यता क्यों पाई जाती है ? १. उसे चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना अच्छा लगता
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प्रo ३४. जब सब क्रमबद्ध है हमारा कार्य क्या रहा ? मात्र ज्ञाता दृष्टा ही रहा ।
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प्र० ३५. यदि हमारा कार्य सिद्ध भगवान के समान ज्ञाना दृष्टा ही रहा तो हमारे में सिद्ध भगवान में क्या फरक रहा ? कुछ भी फर्क नहीं रहा ।
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२. वह जिनेन्द्र भगवान को आज्ञा से बाहर निगोद का पात्र है।
प्र० ३६. तो विश्व की व्यवस्था सब व्यवस्थित ही है ?
प्रवचनसार गा० ९३ में "पारमेश्वरी व्यवस्था" कहा है विश्व की व्यवस्था सब व्यवस्थित ही है इसमें जरा भी हेर फेर नहीं हो सकता ।
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प्र० ३७. तो निमित से उपादान में कुछ होता है ऐसा लोग क्यों कहते हैं ? चारों गतियों में घूमकर निगोद में जाना है इसलिए कहते हैं ।
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