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________________ उ० ( ६५ ) (१०) ज्ञानावर्णी क्षयोपशम का व्यय, ज्ञानावर्णी के क्षय का उत्पाद, कारण धगंगा ध्र व । (११) मतिज्ञान का व्यय, श्रु तज्ञान का उत्पाद, ज्ञान गुण ध्र व प्र० ३०. (१) क्रियावती शक्ति (२) देखकर ज्ञान हुग्रा (३) घखकर ज्ञान हुआ इन में उत्पाद व्यय ध्रौव्य लगायो ? (१) गमन रूप परिणमन का प्रभाव, स्थिररूप परिणमन का उत्पाद प्रौर क्रियावती शक्ति ध्रुव । (२) ज्ञान की पहली पर्याय का प्रभाव, नवीन पर्याय की उत्पत्ति, ज्ञान गुण धव। (३) ऐसा ही तीसरे नम्बर में है | दूसरे नम्बर के समान] प्र० ३१. अस्तिपना घस्तु का लक्षण क्या सिद्ध करता है ? उ० विश्व में जानि अपेक्षा छः द्रव्य है। प्रत्येक द्रव्य में प्रनंत २ गुण हैं । हरएक गक्ति की स्वत: गमय समय पर अवस्था बदलती रहती है । शक्ति कायम रहती है जैसे ''सत् द्रव्य लक्षण म्'। अपनी अवस्थानों को पलटते पलटते ही द्रव्य अनादि अनंत कायम रहता है। इसकी सिद्धि के किये "उत्पाद व्यय ध्रौव्य युवत सत्' अर्थात् वस्तु प्रत्येक समय अपनी सत्ता कायम रखते हुए भी पूर्व अवस्या का व्यय नवीन अवस्था की उत्पत्ति करता रहता है। प्र० ३२. अस्तित्व गुण से सिद्ध होता है सब द्रव्यों के गुणों की पर्याय क्रमबद्ध क्रम-नियमित है उसमें जरा भी हेर फेर नहीं हो सकता? उ० १. मोक्षमार्ग प्रकाशक में कहा है. "अनादि निधन वस्तु जुदी
SR No.010116
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages219
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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