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________________ कडबका लेख १३५ 1 ४० चिन्तामणिरिति ध्रुवं यं वदन्त्यर्थिनः । नित्यं प्रीत्या प्राप्तार्थसम्पदसौ प्रभूतवर्ष इति वि ४१ ख्यातो भूपचक्रचूडामणि: [11] तस्यानुजः धारावर्ष -श्री- पृथ्वी बल्लभ-महाराजाधि ४२ राजपरमेश्वरः खण्डितारि-मण्डलासि भासित - दोर्दण्डः पुण्डरीक' इत्र बलिरिपु-मर्द्दना ४३ क्रान्त-सकल-भुवनतलः सुकृतानेक-राज्य-भार- भारोद्वहन समर्थः हिमशैल-वि--- ४४ शालोर : स्थलेन राजलक्ष्मी-विहरण- मणिकुट्टिमेन चतुराङ्गनालि गन-तुङ्ग-कुच तीसरा पत्र; पहली बाजू ४५ संग-सुखोद्रेकोदित - रोमाञ्च योजितेन ख-भुजासि-धारा-दलितसमस्त- ' गलित-मुक्ताफल-वि ४६ सर - विराजितारि-बल- हस्ति- हस्तास्फालन- दन्त-कोटि- घट्टित-घनीकृतेन विराजमानः त्रिपुर ४७ हर वृषभ - ककुदाकारोन्नत विकटांस-तट-निकट दोधूयमान- चारुचामर-चयः फेन - पिण्ड ४८ पाण्डुर- प्रभावोदितच्छविना वृत्तेनापि चतुराकारेण सितातपत्रेणाच्छादित समस्त-दिग्- विव ४९ रो रिपुजनहृदयविदारणदारुणेन सकलभूतलाधिपत्यलक्ष्मीली १ 'पुण्डरीकाक्ष' पढ़ो। २ ' दलितमस्त' पढ़ो | ३ आगे ४९ वीं पंक्तिसे प्राचीन लेखमाला, प्रथम भाग, लेख ११ परसे लिया है ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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