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जैन - शिलालेख -संग्रह
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मथुरा - संस्कृत -- भग्न | [ सं० २९९ ]
१. नमस्- सर्वसिद्धाना अरहन्ताना । महाराजस्य राजातिराजस्य संच्छरशते द [ - ] [ तिये नव (?) -नवत्यधिके । ]
२. २०० ९० ९ (१) हेमन्तमासे २ दिवसे १ आरहातो महावीरस्य प्रातिमा
३. .... स्य ओखारिकाये धितु उझतिकाये च ओखाये श्राविका भगिनिय []
४. ........ शरिकस्य शिवदिनास्य च एतैः आराहातायनाने स्थापित []
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-- देवकुलं च ।
५...
अनुवाद - सब सिद्धों और अर्हन्तोंको नमस्कार हो । महाराज और राजा तिराजके ( ९९ से अधिक ) दूसरी शताब्दिमे, २९९ ( ? ), शीतऋतुके दूसरे महीने के पहले दिन - भगवान महावीरकी प्रतिमा अर्हन्मन्दिर में के द्वारा तथा.. की पुत्री, ओखरिकाफी उज्झतिका द्वारा, ... श्राविका भगिनी जोखाके द्वारा, तथा शिरिक और शिवदिना इनके द्वारा स्थापित की गई साथमें एक जिनमन्दिर भी ।
[G. Buhler, J RAS, 1896, p. 578-581.] ૮૦
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मथुरा - संस्कृत - भन्न [ गुप्तकाल ? वर्ष ५७ ] संवत्सरे सप्तपञ्चाश ५० ७ हेमन्धत्रिती.... १ --- [द] से त्रयोदशे अ-पूर्वायां....
१ 'हेमन्त' और 'तृतीय' या 'तृतीये' पढ़ो।