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मथुराके लेख
मथुरा-प्राकृत-भन ।
[बिना कालनिर्देशका] अ. तिये निर्वर्तना ब. १. तो शखतो शिरिकतो संभोकतो अर्य ३. ... लनस्य मतु हा [स्त ]......." २.f-धराये निवतना शिवद [त]
[E1, II, n° XIV, n° 351 [नोट-निर्वर्तना' और 'निवतना' इन दो शब्दोंके एक ही शिलालेखों आ जानेसे एक ही शिलालेखके दो खण्ड मालूम पड़ते हैं और वे सम्बद्ध अर्थको व्यक्त नहीं करते हैं।
मथुरा-प्राकृत।
(विना कालनिर्देशका) १............ये मोगलिपुतस पुफकस भयाये
असाये पसादो अनुवाद-किसी मोगली (मों मौद्गलीविशेष) के पुत्र, पुफक (पुष्पक) की पली, असा (अश्वा !) का दान।
[1A,XXXIIT, p. 151, n° 28.]
राजगिरि-संस्कृत।
T. Bloch के आर्कीओलोजिकल सर्वे, बङ्गाल सर्किल, वार्षिक रिपोर्ट १९०२, पृ० १६, विश्लेषणमें इस शिलालेखका उल्लेख है । मूलका पता नहीं है।
[AS, Bengal cirole, Annnal report 1902, p. 16. ३. ]