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* ऐलक-चर्या * क्या होनी चाहिये और क्या हो रही है ?
हमारे कितने ही भाई ऐलक और मुनि मे इतना ही भेद समझते हैं कि ऐलक लगोट लगाते है और मुनि लगोट नही लगाते नग्न रहते है। इसके सिवाय दोनो की चर्या में और कोई अन्तर नही समझते । और ऐलक जी भी स्वय ऐसा ही समझते है। किन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है और आगम भी ऐसी साक्षी नही देते । शास्त्रो में वाह्यवेश के सिवाय दोनो की चर्या में भी कुछ अन्तर जरूर रखा है। पर वह अन्तर आज लोप किया जा रहा है और बहुत कुछ लोप हो भी चुका है जिसका भान विद्वानो तक को नहीं होता । किन्तु तद्विषयक आगमो के देखने वालो को उक्त भेद स्पष्ट नजर मे आने लगता है वह कैसे छिपाया जा सकता है।
ऐलक यह एक श्रावक का उत्कृष्ट लिंग है। इसके ऊपर मुनि होने के अतिरिक्त और कोई श्रावक का दर्जा नही इसी अभिप्राय से किन्ही ग्रन्थो मे उनका लघुमुनि, देशयति, मुनिकुमार या ऐसे ही किसी नाम से उल्लेख किया गया है। जब तक शरीर पर वस्त्र का एक धागा भी पड़ा रहेगा तव तक मुनि नहीं कहाये जा सकते, फिर उनके पास तो वस्त्र की वडी सी कौपीन रहती है। इसलिए ऐलको की मान्यता और चर्या ऐलको ही के अनुरूप होनी चाहिये, न कि मुनि के तुल्य । लेकिन हम देखते हैं कि ऐलक पद के लिए पूर्वाचार्यों ने जो कुछ सीमा वाँधी थी आज उसका उल्लङ्घन किया जा रहा ।