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एकेन्द्रियो के द्वोन्द्रिय के
त्रीन्द्रिय के
चतुरिन्द्रिय के
पचेन्द्रियों मेअसज्ञी तिर्यच के
सनी तिथंच के मनुष्य के
★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
६६१३२
५०
६०
४०
is is its
८५
कुल जोड=६६३३६
देखो गोम्मटसार जोवकाड गाथा १२२ - आदि तथा स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा वडा पृष्ठ ७६
एकेन्द्रियो के ६६१३२ क्षुद्र भवो का विवरण निम्न प्रकार है
चार स्थावर और साधारण वनस्पति ये पाँचो सूक्ष्म वादर होने से १० भेद हुए । प्रत्येक वनस्पति वादर ही होती है मत उसका एक भेद १० मे मिलाने से ११ हुए । इन_११ का भाग उक्त ६५१३२ मे देने से लब्ध ६०१२ आते हैं । वस हर एक अलब्धपर्याप्तक स्थावर जीव के ६०१२ क्षुद्रभव होते हैं । इस विषय को इस तरह समझना कि — कोई जीव किसी एक पर्याय में मरकर पुन पुन उसी पर्याय मे लगातार जन्ममरण करे तो कितने वार कर सकता है इसकी भी आगम मे नियत सख्या लिखी मिलती है । जैसे नारकी - देव - भोग भूमिया जीव मरकर लगते हो दुवारा अपनो उसी पर्याय मे पैदा नही हो सकते हैं । कोई जीव मनुष्य योनि में जन्म लिए