________________ मंगलम् जयति त्रिजगद्व्याप्तमिध्यात्वध्वान्तनाशिन / श्रीवद्ध मानतीर्थेशा केवलज्ञानभास्करा // 1 // प्रमाणनय निर्णीत - वस्तुतत्त्वमबाधितम् / हितावह समीचीनं युक्तिमज्जिनशासने // 2 // कालदोषादभूत्तत्राऽपसिद्धांतविवेचना / युक्त्यागमविरुद्धा च विपरीतक्रियापरा ||3|| पक्षव्यामोह-सनस्ता केचित् पण्डितमानिन / यथामत्याहती वाणीमाहु श्रद्दधतेऽपि च // 4 // अनाकलव्य सत्यार्थ सन्मार्गस्थ विडबनाम् / कृत्वके जनजनता-मति विभ्रमयन्ति च // 5 // सत्यासत्य-विवेकायोद्धृत्य सूक्तिसुधारसम् / मिलापचन्द्र शास्त्राब्धेभ्यंतरच्चेत्किमद्भुतम् / / 6 / / सत्पथ-प्रचलमाय किंचना-लेखि विज्ञजनसम्मतं मतम् / तज्जिनेन्द्रनयनिणिनीषवो विज्ञगोष्ठिषु विमृश्य तन्वताम् / / 7 / / शास्त्रार्थ नवनीतेनाऽनेन नूताऽस्तु भारती / सतां दृग्ज्ञानचारित्रदायिनी वरदायिनी // 8 // मगल भगवान् वीरो, मंगल जिनभारती / मगल साधयो नित्य, मगल धामिका जना // 6 //