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६७२ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ तो जिन मूर्ति है इसी प्रकार कुछ मूर्तियो पर गजारूढ इन्द्र कलश करते हुए पुष्पवृष्टि करते देव गण, दुन्दुभि बजाते किन्नर आदि उत्कीर्ण रहते है, ये सब जिनेन्द्र की महत्ता के द्योतक हैं और सव भगवान् के किंकर है। अत. यक्षमूर्ति का आपका प्रमाण अकार्यकारी है।
मगलाष्टक का कर्ता कौन है ? किस वक्त की यह रचना है बतावे ? जब तक यह प्रमाणित नहीं होता, तब तक इस पर कैसे विचार किया जा सकता है ? आशाघरादि की मान्यता वाले किसी व्यक्ति की यह आधुनिक रचना मालूम होती है। इस तरह आपका यह उल्लेख भी अकार्यकारी है।
(३) अन्त मे आप लिखते है जब तक किसी प्राचीन भण्डार मे जयसेन प्रतिष्ठा पाठ की प्रति न मिल जाय तब तक इसकी प्रमाणिकता मे सन्देह ही है, क्योकि यह प्रतिष्ठा पाठ प्राचीन होता तो हर एक भण्डार मे मिलता। इसके विपय मे यह भी सुना जाता है कि किसी प्रतिष्ठा पाठ को हेरफेर कर के प० जवाहरलाल जी शास्त्री और झूथालालजी ने मिल कर इसे बनाया है और इसका नाम जयसेन प्रतिष्ठापाठ रख दिया है।
समीक्षा
किसी ग्रन्थ को एक ही प्रति मिलने से वह अप्रामाणिक और अप्राचीन है, यह अद्भुत न्याय है। बहुत से ऐसे ग्रथ है, जिनकी एकही प्रति उपलब्ध है, क्या इसीसे वे अप्रामाणिक और अप्राचीन (आधुनिक) हो जायेंगे ? कदापि नहीं। जिसे जरूरत हो उसे दूसरी प्रतियो की खोज करना चाहिये । खोज करने का