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पज्यापूज्य-विवेक और प्रतिष्ठापाठ ] [ ६७१ है आपने जो पजा करके अर्घ चढाना लिखा है यह गलत है। यह सब कथन अन्य जन्म सस्कार क्रिया का है, जो लौकिक क्रिया है, अत उसका प्रमाण व्यर्थ है।
आगे आप लिखते है-(पर्व ४० मे) आदिपुराण मेइन्द्राय स्वाहा, ब्राह्मणाय स्वाहा देव ब्राह्मणाय स्वाहा इत्यादि मन्त्रो से आहुति देना लिखा है। समीक्षा सो यह भी लौकिक विवाह जात्त कर्मादि क्रियाओ के लिए है जो घर पर ही की जाती है। इसके सिवा इनमे कही भी नम. (नमस्कार) नही लिखाहै सिर्फ स्वाहा सन्मानस्मरणार्थ है । " ""इन्द्राय स्वाहा, ब्राह्मणाय स्वाहा' ठीक ऐसे के ऐसे वाक्य महापुराण मे किन्ही भी मन्त्रो मे नही दिये गये है, खैर | आशाधर जी ने प्रतिष्ठा ग्रन्थ मे जो २४ यक्षयक्षियो, नवग्रह, दश दिग्पाल क्षेत्रपाल, रोहिणी जयादि देवियो की स्थापना कर पूजा करना लिखा है, इसमे से एक मी नाम जिनसेन के महापुराण मे इन पीठिकादि मन्त्रो मे नही पाया जाता है, अत: आपका आदिपुराण का प्रमाण देना गलत है।
(५) आगे आप फिर लिखते है .-कर्मकाड गाथा ६७१ मे बताया है कि चामुण्डराय ने चैत्यालय के सामने ऊचे स्तम्भ पर यक्ष की मूर्ति स्थापित की थी. " । मङ्गलाष्टक श्लोक ४ मे सरागी देव देवियो से मङ्गल कामना की गई है।
समीक्षा गोम्मटसार की उक्त गाथा मे यह भी लिखा है कि-वह यक्ष की मूर्ति सिद्धो के चरणो मे शिर झुकाये हुए थी। इसी प्रकार जिन प्रतिमा के पार्श्वभाग मे चमर, लिये यक्ष-मूर्तियां होती हैं । ये सब सेवक रूप मे है, स्वयम् पूज्य नही है, पूज्य