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पज्या पूज्य - विवेक और प्रतिष्ठापाठ ]
परिश्रम तो किया जावे नही और अपने प्रमाद एव अज्ञानता का दोष ग्रन्थ और ग्रन्थकार पर डाला जाषे यह ठीक नही ।
सम्पादक --- जैनदर्शन तो जयसेन प्रतिष्ठापाठ को १२वी शताब्दी का प्राचीन बताते है और आप आधुनिक । दोनो मे कौन ठीक है ? पहिले दोनो निर्णय करले । आपने जो यह लिखा है कि पं० जवाहरलालजी और झू घालालजी ने किसी प्रतिष्ठापाठ को हेर फेर कर इसे बनाया है तो इसके लिये आपके पास क्या प्रमाण है ? किस प्रतिष्ठापाठ को हेर फेर कर बनाया है ? उसका नाम बताये ? आप लोग कभी बाबा दुलीचन्दजी द्वारा काटछांट किया हुआ लिखते हैं कभी क्या लिखते हैं इस तरह आप इस सद्ग्रन्थ का लोप करना चाहते हैं यह सब आपका कुप्रयास है। इस पर तुलसीदासजी का एक दोहा याद आ जाता है
हरित भूमि तृण सकुलित,
समुझि पडे नहीं पथ |
जिमि पाखडि विवाद ते.
लुप्त होहि सद्ग्रन्थ ||