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[ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २
अर्थ - जिन्होने इस पंचमकाल मे गिरनारपर्वत के शिखर पर पापाण निर्मित सरस्वती देवी को बुलवाया वे कुन्दकुन्दाचार्य मेरी रक्षा करें।
शास्त्रो मे " चतुर्विधाना श्रमणाना गण सघ." ऋषिमुनि यति अनगार ऐसे चार प्रकार के मुनियो का समुदाय सघ कहलाता है - ऐसी सघ शब्द की व्याख्या मिलती है। आचार्य कुन्दकुन्द भी इन चार प्रकार के मुनि सघ के साथ गिरनारजी गए होगे । विष्णु कुमार मुनि की कथा से भी अकपनाचार्य सात सौ मुनियों के सघ सहित उज्जयिनी मे आए थे ऐसा तो लिखा है पर यह नही लिखा कि- हजारो श्रावक गाडी घोडे डेरा तम्बू उनके साथ थे । अन्य भी मुनिसघ की कथाओ मे ऐसा वर्णन नही आता है ।
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हा अलबत्ता ऐसा हो सकता है कि नन्दिसंघ की गुर्वावली मे कुन्दकुन्द की उपर्युक्त घटना का सम्बन्ध भट्टारक पद्मनन्दि के साथ लिखा है । कुन्दकुन्द का अपर नाम पद्मनन्दि भी है । अत भ्रम से पद्मनन्दि की घटना को कुन्दकुन्द के साथ लगादी है । पाषाण की बनी सरस्वती को बलात् बुलाने से ही वे भट्टारक पद्मनन्दी शायद सरस्वती गच्छ के कहलाते हैं । इस नामका गच्छ कुन्दकुन्द के वक्त नही था । इन पद्मनन्दी का समय उक्त गुर्वावली मे विक्रम स० १३८५ से १४५० लिखा है । चूकि ये भट्टारक थे इसलिए गाडी घोडे डेरा तम्बू आदि की सम्भावना भी इनके साथ तो हो सकती है । परन्तु कुन्दकुन्द के साथ नही | #
* कुन्दकुन्दाचार्य के तो चारणऋद्धि थी जिससे वे विदेह क्षेत्र मे सीमधरस्वामी के समवशरण मे गये थे । अत. ऋद्धि के बल से ही वे