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उद्दिष्ट दोष मीमांसा ]
[ ६४६ उद्दिष्ट है । इसका मतलब हुआ गृहस्थ अपने निमित्त बना आहार मुनि को दे तो उसमे उद्दिष्ट दोष नहीं है। कहिये चूडीवालजी आपका कथन प्रमाण माना जाये या शुभचन्द्र आदिका । राजा श्रेयास ने भगवान् को आहार दिया था उस वक्त मनिदान की प्रवृति न हुई थी। वह आहार श्रेयाम के कुटुम्ब के लिए ही बना बनाया तैयार रखा था उसे भगवान् ने लिया तो आपके सिद्धातानुसार क्या भगवान् ने उद्दिष्ट आहार लिया?
आपने लिखा-"कुन्दकुन्द स्वामी की गिरनारजी की यात्रा मे सहस्रो श्रावक गाडी घोडे डेरा तम्बू सहित साथ मे गये थे रास्ते मे साधुओ को दान देने के लिए चौके भी बनते थे। उन चीको मे साधु आहार भी लेते थे।" ऐसा लिखकर आपने यह अभिप्राय प्रगट किया है कि यह सव आडम्बर मुनियो के निमित्त से ही हुआ था। उत्तर मे हमारा लिखना है कि-इस प्रकार का वर्णन कहा किसने कमा लिखा है ? सो तो आपने वताया नही बताते तो हम उसकी प्रामाणिकता पर विचार करते । ऐसा सुनते हैं कि-कुन्दकुन्दाचार्य सघ सहित गिरनारजी गए थे वहा श्वेताबरो से विवाद हुआ ( देखो वृन्दावनजी कृत-गुरुदेवस्तुति सघ सहित श्रीकुन्दकुन्दगुरु, वदन हैन गए गिरनार ।) उस विवाद मे उन्होने पाषाण की बनी सरस्वती की मूर्ति मे से ये शब्द बुलवाए कि-"सत्यमार्ग दिगम्बरो का है।" इस घटना का उल्लेख शुभचन्द्र ने भी पाडव पुराण में इस प्रकार किया है
कुन्दुकुन्दो गणी येनोर्जयंत गिरिमस्तके । सोऽवताद् वादिता ब्राह्मी पाषाण घटिता कलौ ॥१४॥
[प्रथमपर्व]